Wednesday, December 20, 2006

हंसता हुआ धर्म (ओशो की पुस्तकों से संकलित)-3



अमृतसर के स्टेशन पर जब टिकट चैकर आया तो सरदार जी ने देखा कि उनके बगल मे बैठे सज्जन ने कह दिया कि मै तो नेता जी हूँ और टिकट चॅकर आगे बढ गया। इसी तरह स्टेशन के गेट पर भी वे बाहर निकल गये और कुली को पैसे भी नहीं दिये। सरदार जी यह देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुये। उन्होने भी यह तरकीब अपनाने की सोची। अगली बार जब वे कहीं जा रहे थे तो उन्होनें भी टिकट नहीं खरीदा। टिकट चेकर ने पूछा: टिकट दिखाइये।
' अरे भाई, टिकट माँगते शर्म नहीं आती? मै इस देश का नेता हूँ? '
' माफ़ करिये'--टिकट चेकर बोला-- 'आपका शुभ नाम क्या है? सरदार जी ने इसका कोई उत्तर तो सोचा नहीं था। सो वे घबरा गये और घबडाहट मे बोले: 'अरे मुझे जानते नहीं , मै इंदिरा गांधी हूँ !'
टिकट चेकर भी सरदार था। पैर छूकर बोला : 'भैया, बडे दिनों से दर्शन की अभीलाषा थी, आज पूरी हुई।'

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एक बहुत सुंदर युवती एक कैथोलिक पादरी के पास अपने पाप की स्वीकारोक्ति , कनेफ़ैशन करने आयी। परदे की ओट मे पादरी बैठा---एक तरफ़ पादरी, दूसरी तरफ़ युवती। लेकिन पादरी युवती को जानता है, अति सुंदर है ! युवती कहती है कि मुझसे कुछ भूल हो गयी है, उसके लिये स्वीकार करने आयी हूँ। क्षमा करने की कृपा करें। कल एक युवक आया, उसने मेरे पैर पर हाथ रखा।
पादरी उत्सुक हुआ ! पादरी ने कहा : फ़िर ? लेकिन उसके पूछने मे कि फ़िर , बडी आतुरता थी ! युवती ने कहा :फ़िर वह मेरी साडी खीचने लगा। पादरी की धडकन बढी और उसने पूछा : फ़िर ? युवती ने कहा : फ़िर मुझे भी अच्छा लग रहा था, तो मैनें साडी खींच लेने दी। पादरी ने पूछा : फ़िर ? तो उसने कहा : फ़िर, फ़िर मेरी माँ आ गयी । पादरी ने कहा :धत तेरे की !

4 comments:

Udan Tashtari said...

हा हा, सरदार जी का किस्सा बेहतरीन रहा!!

संजय बेंगाणी said...

बहुत अच्छे, गुदगुदाते चुटकुले.

Anonymous said...

वो दूसरे वाले चुटकुले में आगे क्या हुआ ?

pravin said...

Please continue it....

because LAUGHTER IS A GOOD MEDICINE...