Monday, December 25, 2006

Wednesday, December 20, 2006

हंसता हुआ धर्म (ओशो की पुस्तकों से संकलित)-3



अमृतसर के स्टेशन पर जब टिकट चैकर आया तो सरदार जी ने देखा कि उनके बगल मे बैठे सज्जन ने कह दिया कि मै तो नेता जी हूँ और टिकट चॅकर आगे बढ गया। इसी तरह स्टेशन के गेट पर भी वे बाहर निकल गये और कुली को पैसे भी नहीं दिये। सरदार जी यह देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुये। उन्होने भी यह तरकीब अपनाने की सोची। अगली बार जब वे कहीं जा रहे थे तो उन्होनें भी टिकट नहीं खरीदा। टिकट चेकर ने पूछा: टिकट दिखाइये।
' अरे भाई, टिकट माँगते शर्म नहीं आती? मै इस देश का नेता हूँ? '
' माफ़ करिये'--टिकट चेकर बोला-- 'आपका शुभ नाम क्या है? सरदार जी ने इसका कोई उत्तर तो सोचा नहीं था। सो वे घबरा गये और घबडाहट मे बोले: 'अरे मुझे जानते नहीं , मै इंदिरा गांधी हूँ !'
टिकट चेकर भी सरदार था। पैर छूकर बोला : 'भैया, बडे दिनों से दर्शन की अभीलाषा थी, आज पूरी हुई।'

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एक बहुत सुंदर युवती एक कैथोलिक पादरी के पास अपने पाप की स्वीकारोक्ति , कनेफ़ैशन करने आयी। परदे की ओट मे पादरी बैठा---एक तरफ़ पादरी, दूसरी तरफ़ युवती। लेकिन पादरी युवती को जानता है, अति सुंदर है ! युवती कहती है कि मुझसे कुछ भूल हो गयी है, उसके लिये स्वीकार करने आयी हूँ। क्षमा करने की कृपा करें। कल एक युवक आया, उसने मेरे पैर पर हाथ रखा।
पादरी उत्सुक हुआ ! पादरी ने कहा : फ़िर ? लेकिन उसके पूछने मे कि फ़िर , बडी आतुरता थी ! युवती ने कहा :फ़िर वह मेरी साडी खीचने लगा। पादरी की धडकन बढी और उसने पूछा : फ़िर ? युवती ने कहा : फ़िर मुझे भी अच्छा लग रहा था, तो मैनें साडी खींच लेने दी। पादरी ने पूछा : फ़िर ? तो उसने कहा : फ़िर, फ़िर मेरी माँ आ गयी । पादरी ने कहा :धत तेरे की !

Monday, December 18, 2006

एक लाख रू में कार खरीदने का सपना पूरा करें।

अगर आप नया दो पहिया वाहन लेने के इरादे मे हैं तो वर्ष 2007 का जरा सा इन्तजार कर लें। वर्ष 2007 मे टाटा अपनी नई कार मात्र एक लाख रू में बाजार मे उतार रही है। वैसे यह चित्र कितने सही हैं इसके बारे मे मुझे भी संशय है , यह चित्र मुजे कल ही मेल द्वारा प्राप्त हुई थी ।







Thursday, December 14, 2006

हंसता हुआ धर्म (ओशो की पुस्तकों से संकलित)

hasta hua dharm


एक दिन नसरुदीन घबडाया हुआ सा अपने निजी डाक्टर के पास पहुंचा और उससे बोला कि डाक्टर साहब,मेरे नौजवान बेटे ने , जिसे की छूत की बीमारी है, मेरी नौजवान नौकरानी को चूम लिया है और कहता है कि मै उसे अक्सर चूमा करता हूँ। 
डाक्टर बोला, तो आखिर इसमें इतना परेशान होने की बात क्या है? नसरुदीन, आखिर वह भी युवा ही है। फ़िर छोकरे छोकरे हैं, लडके लडके हैं और नौकरानी को चूमा है न , इसमे घबराते इतना क्यों हो?
नसरुदीन बोला, पर डाक्टर साहब , आप समझने की कोशिश करे क्योंकि मै भी उस नौकरानी को अक्सर चूमा करता हूँ। क्या वह छूत का रोग मुझे नहीं लग सकता? डाक्टर बोला, घबराओ मत बडे मियां, नौकारानियां आखिर चूमने के लिये ही तो रखी जाती हैं । और छूत की बीमारी कोई बीमारी है! और यदि तुम्हें कोई लग भी जाय , तो उसका आखिर इलाज है। मै किसलिये हूं?
नसरुदीन बोला, पर डाक्टर साहब, बात यहीं खत्म नहीं होती। नौकरानी को चूमने के बाद मै कई बार अपनी पत्नी को भी चूम चुका हूं।
अब डाक्टर ने घबराते हुये कहा, ऐ, तो क्या यह वाहियाद रोग मुझे भी लग गया।

Wednesday, December 06, 2006

चन्द भारतीय क्रिकेटरों की ई -मेल आई डी

1. लक्षमण:
available@home-only.com

2.गाँगुली:
nowdays@no_use.com

3.कुम्बले:
only@test_match.com

4.सचिन तेन्दुलकर:
admitted@hospital.com

5.कैफ़:
good@for_nothing.com

6.SEHWAG:
consistently@out_of_form.com

7.राहुल द्रविड:
stick@crease_like_fevicol.com

8.इरफ़ान पठान:
takewickets@only_with_kenya.com

9.गुरु ग्रेग चैपल:
only_experiment@noresult.com


10. मुनफ़ पटेल:
only_line&length@nospeed.com


11.हरभजन सिह
no_spinpitch@nowicket.com



12. सुरेश रैना:
why_i_am_there@god_knows.com

Tuesday, December 05, 2006

मुल्ला नसरुद्दीन के कारनामे

hasta hua dharm


ओशो के व्यक्तित्व को कौन नही जानता। उनकी बहुत सी बातो से भले ही हम रजामंद न हो लेकिन एक बात तो तय है कि उनका व्यक्तित्व बहुयामी रहा। मुल्ला नसरुद्दीन के चरित्र को उन्होने बडी बखूबी अपने प्रवचनों मे उतारा है और सबसे विशेष बात कि उनके अधिकतर लतीफ़े कहीं से उधार लिये हुये नही थे बल्कि उनके स्वंय के ही बनाये हुये थे। प्रस्तुत लतीफ़ों की श्रृंखला "उत्सव आमार जाति, आनन्द आमार गोत्र" से ली गयी है।

मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे ने उससे पूछा : पापा, मेरे मास्टर कहते हैं कि दुनिया गोल है। लेकिन मुझे तो चपटी दिखाई पडती है। और डब्बू जी का लडका कहता है कि न तो गोल है , न चपटी , जमीन चौकोर है। पापा ,आप तो बडे विचारक हैं , आप क्या कहते हैं ?
मुल्ला नसरुद्दीन ने आंखे बन्द की और विचारक बनने का ढोंग करने लगा। कुछ देर यूँ ही बैठा ही रहा, हाँलाकि उसके समझ मे कुछ नहीं आया ,सब बातें सिर से घूमती रहीं कि आज कौन सी फ़िल्म देखने जाऊं, क्या करुं क्या न करूं। बेटे ने कहा : पापा, बहुत देर हो गयी , अब तक आप पता नही लगा
पाये कि दुनिया गोल है , चपटी या फ़िर चौकोर?
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा : बेटा , न तो दुनिया गोल है न चपटी न चौकोर। दुनिया चार सौ बीस है।

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एक आदमी ने गाँव के नेता जी को किसी बात पर सच्ची बात कह दी । कह दिया कि उल्लू के पटृठे हो! अब नेता जी को उल्लू का पटृठा कहो तो नेता जी कुछ ऐसे ही नहीं छोड देगें। उन्होनें अदालत मे मुकदमा मानहानि का चलाया।
मुल्ला नसरुद्दीन नेता जी के पास ही खडा था तो उसको गवाही मे लिया । जिसने गाली दी थी नेता जी को , उसने मजिस्ट्रेट को कहा कि होटल में कम से कम पचास लोग ,जरुर मैने उल्लू का पटृठा शब्द का उपयोग किया है; लेकिन मैने किसी का नाम नही लिया । नेता जी कैसे सिद्द कर सकते हैं कि मैने इन्ही को उल्लू का पटृठा कहा है।
नेता जी ने कहा : सिद्द कर सकता हूँ। मेरे पास गवाह हैं। मुल्ला को खडा किया गया । मजिस्ट्रेट ने पूछा कि मुल्ला , तुम गवाही देते हो कि इस आदमी ने नेता जी को इंगित करके उल्लू का पटृठा कहा है! मजिस्ट्रेट ने कहा : तुम कैसे इतने निशिचत हो सकते हो? वहाँ तो पचास लोग मौजूद थे, इसने किसी का नाम तो लिया नहीं। नसरुद्दीन ने कहा : नाम लिया हो कि न लिया हो, पचास मौजूद हों कि पांच सौ मौजूद हों , मगर वहां उल्लू का पटृठा केवल एक था । वह नेता जी ही थे ! मै अपने बेटे की कसम खाकर कहता हूँ कि वहां कोई और दूसरा था ही नहीं , यह कहता भी तो किसको ?

**************************************************************एक गाँव मे एक धर्मगुरु आये । मुल्ला नसरुद्दीन भी सुनने गया। धर्मगुरु का उपदेश था कि दूसरों के जीवन मे व्यवधान डालना हिंसा है। प्रवचन के बाद मुल्ला मंच पर पहुचा, बोला मै आपको एक बढिया लतीफ़ा सुनाता हूँ, जरा गौर से सुनिये। लतीफ़ा चार खडों मे है।
पहला खण्ड : एक सरदार जी साइकिल पर अपनी बीबी को बैठा कर कहीं जा रहे थे। रास्ते में गडृढा आया, बीबी चिल्लायी: जरा बच कर चलाना ! सरदार जी ने साईकिल रोकी और उतर कर बीबी को एक झापड मार कर कहा : साइकिल मै चला रहा हूँ कि तू?
धर्मगुरु बोले : सही बात है, किसी के काम मे अडंगा नही डालना चाहिये।
मुल्ला ने आगे कहा : जरा सुनिये दूसरा खंड । सरदार जी घर आये। बीबी चाय बनाने बैठी । गुस्से मे तो थी ही , स्टोव मे खूब हवा भरने लगी । सरदार जी बोले : देखो, कहीं टकी फ़ट न जाये। बीबी ने सर्दार जी दाढी पकड कर सरदार जी को एक चांटा लगाया। बोली : चाय मै बना रही हूँ कि तुम ?
धर्मगुरु बोले : वाह-वाह, क्या चुटकुला है ! किसी के काम मे बीच मे बोलना ही नही चाहिये।
मुल्ला ने कहना आगे जारी रखा । कहा : सुनिये, अब सुनिये चौथा खंड…...एक बार एक सरदार जी……..।
धर्मगुरु ने बीच मे टोका : अरे भाई, पहले तीसरा सुनाओ। दूसरे के बाद यह चौथा खंड कहां से आ गया? नसरुद्दीन ने आव न देखा ताव , भर ताकत एक घूंसा धर्मगुरु की पीठ पर लगाया और बोला : चुटकुला मै सुना रहा हूँ कि तुम ?
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नसरुद्दीन का बेटा फ़जलू स्कूल से चार नये शब्द सीख आया- दारु,हुक्का,रंडीऔर उल्लू का पटृठा। वह बारम्बार इनके अर्थ पूछे। इस डर से कहीं बेटा बिगड न जाय, नसरुद्दीन ने दारु का अर्थ चाय, हुक्का का अर्थ काफ़ी, रंडी का अर्थ भिंडी की सब्जी , और उल्लू का पटृठा यानी मेहमान बतला दिया। दूसरे ही दिन एक विचित्र घटना घटी, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। फ़जलू बहार बरामदे में बैठा था , तभी नसरुद्दीन का कोई परिचित उससे मिलने आया। फ़जलू ने कहा : आओ उल्लू के पटृठे, कुर्सी पर बैठो। मित्र तो यह सुन कर हैरान हो गया। बोला, तुम्हारे पापा कहां गये हैं? फ़जलू ने कहा :पापा, अरे वह बाजार गये हैं रंडी खरीदने। आजकल उन्हें रंडी बहुत भाती है। वे आते ही होगें।
फ़जलू ने अपने नये शब्द-भंडार का उपयोग करने का अच्छा अवसर देख कर कहा : आप हुक्का पीना पंसद करेगें या दारु लेकर आऊँ? वह मित्र तो यह सुन कर हक्का-बक्का रह गया,घबराते हुये बोला : फ़जलू कैसी उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो? तुम्हारी मम्मी कहाँ हैं? उन्ही को बुला लाओ, तब तक पापा भी आते होगें।
फ़जलू ने दरवाजे के भीतर झांक कर आवाज लगाई; मम्मी एक उल्लू का पटृठा आया है । मैने हुक्का पूछा, दारु की पूछी तो कुछ नहीं बोला। कहता है कि उल्टी-सीधी बातें मत करो ; जब तक पापा रंडी वगैरह नहीं लाते , तब तक तुम्हारी मम्मी को ही बुला दो।