Tuesday, December 05, 2006

मुल्ला नसरुद्दीन के कारनामे

hasta hua dharm


ओशो के व्यक्तित्व को कौन नही जानता। उनकी बहुत सी बातो से भले ही हम रजामंद न हो लेकिन एक बात तो तय है कि उनका व्यक्तित्व बहुयामी रहा। मुल्ला नसरुद्दीन के चरित्र को उन्होने बडी बखूबी अपने प्रवचनों मे उतारा है और सबसे विशेष बात कि उनके अधिकतर लतीफ़े कहीं से उधार लिये हुये नही थे बल्कि उनके स्वंय के ही बनाये हुये थे। प्रस्तुत लतीफ़ों की श्रृंखला "उत्सव आमार जाति, आनन्द आमार गोत्र" से ली गयी है।

मुल्ला नसरुद्दीन के बेटे ने उससे पूछा : पापा, मेरे मास्टर कहते हैं कि दुनिया गोल है। लेकिन मुझे तो चपटी दिखाई पडती है। और डब्बू जी का लडका कहता है कि न तो गोल है , न चपटी , जमीन चौकोर है। पापा ,आप तो बडे विचारक हैं , आप क्या कहते हैं ?
मुल्ला नसरुद्दीन ने आंखे बन्द की और विचारक बनने का ढोंग करने लगा। कुछ देर यूँ ही बैठा ही रहा, हाँलाकि उसके समझ मे कुछ नहीं आया ,सब बातें सिर से घूमती रहीं कि आज कौन सी फ़िल्म देखने जाऊं, क्या करुं क्या न करूं। बेटे ने कहा : पापा, बहुत देर हो गयी , अब तक आप पता नही लगा
पाये कि दुनिया गोल है , चपटी या फ़िर चौकोर?
मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा : बेटा , न तो दुनिया गोल है न चपटी न चौकोर। दुनिया चार सौ बीस है।

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एक आदमी ने गाँव के नेता जी को किसी बात पर सच्ची बात कह दी । कह दिया कि उल्लू के पटृठे हो! अब नेता जी को उल्लू का पटृठा कहो तो नेता जी कुछ ऐसे ही नहीं छोड देगें। उन्होनें अदालत मे मुकदमा मानहानि का चलाया।
मुल्ला नसरुद्दीन नेता जी के पास ही खडा था तो उसको गवाही मे लिया । जिसने गाली दी थी नेता जी को , उसने मजिस्ट्रेट को कहा कि होटल में कम से कम पचास लोग ,जरुर मैने उल्लू का पटृठा शब्द का उपयोग किया है; लेकिन मैने किसी का नाम नही लिया । नेता जी कैसे सिद्द कर सकते हैं कि मैने इन्ही को उल्लू का पटृठा कहा है।
नेता जी ने कहा : सिद्द कर सकता हूँ। मेरे पास गवाह हैं। मुल्ला को खडा किया गया । मजिस्ट्रेट ने पूछा कि मुल्ला , तुम गवाही देते हो कि इस आदमी ने नेता जी को इंगित करके उल्लू का पटृठा कहा है! मजिस्ट्रेट ने कहा : तुम कैसे इतने निशिचत हो सकते हो? वहाँ तो पचास लोग मौजूद थे, इसने किसी का नाम तो लिया नहीं। नसरुद्दीन ने कहा : नाम लिया हो कि न लिया हो, पचास मौजूद हों कि पांच सौ मौजूद हों , मगर वहां उल्लू का पटृठा केवल एक था । वह नेता जी ही थे ! मै अपने बेटे की कसम खाकर कहता हूँ कि वहां कोई और दूसरा था ही नहीं , यह कहता भी तो किसको ?

**************************************************************एक गाँव मे एक धर्मगुरु आये । मुल्ला नसरुद्दीन भी सुनने गया। धर्मगुरु का उपदेश था कि दूसरों के जीवन मे व्यवधान डालना हिंसा है। प्रवचन के बाद मुल्ला मंच पर पहुचा, बोला मै आपको एक बढिया लतीफ़ा सुनाता हूँ, जरा गौर से सुनिये। लतीफ़ा चार खडों मे है।
पहला खण्ड : एक सरदार जी साइकिल पर अपनी बीबी को बैठा कर कहीं जा रहे थे। रास्ते में गडृढा आया, बीबी चिल्लायी: जरा बच कर चलाना ! सरदार जी ने साईकिल रोकी और उतर कर बीबी को एक झापड मार कर कहा : साइकिल मै चला रहा हूँ कि तू?
धर्मगुरु बोले : सही बात है, किसी के काम मे अडंगा नही डालना चाहिये।
मुल्ला ने आगे कहा : जरा सुनिये दूसरा खंड । सरदार जी घर आये। बीबी चाय बनाने बैठी । गुस्से मे तो थी ही , स्टोव मे खूब हवा भरने लगी । सरदार जी बोले : देखो, कहीं टकी फ़ट न जाये। बीबी ने सर्दार जी दाढी पकड कर सरदार जी को एक चांटा लगाया। बोली : चाय मै बना रही हूँ कि तुम ?
धर्मगुरु बोले : वाह-वाह, क्या चुटकुला है ! किसी के काम मे बीच मे बोलना ही नही चाहिये।
मुल्ला ने कहना आगे जारी रखा । कहा : सुनिये, अब सुनिये चौथा खंड…...एक बार एक सरदार जी……..।
धर्मगुरु ने बीच मे टोका : अरे भाई, पहले तीसरा सुनाओ। दूसरे के बाद यह चौथा खंड कहां से आ गया? नसरुद्दीन ने आव न देखा ताव , भर ताकत एक घूंसा धर्मगुरु की पीठ पर लगाया और बोला : चुटकुला मै सुना रहा हूँ कि तुम ?
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नसरुद्दीन का बेटा फ़जलू स्कूल से चार नये शब्द सीख आया- दारु,हुक्का,रंडीऔर उल्लू का पटृठा। वह बारम्बार इनके अर्थ पूछे। इस डर से कहीं बेटा बिगड न जाय, नसरुद्दीन ने दारु का अर्थ चाय, हुक्का का अर्थ काफ़ी, रंडी का अर्थ भिंडी की सब्जी , और उल्लू का पटृठा यानी मेहमान बतला दिया। दूसरे ही दिन एक विचित्र घटना घटी, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी। फ़जलू बहार बरामदे में बैठा था , तभी नसरुद्दीन का कोई परिचित उससे मिलने आया। फ़जलू ने कहा : आओ उल्लू के पटृठे, कुर्सी पर बैठो। मित्र तो यह सुन कर हैरान हो गया। बोला, तुम्हारे पापा कहां गये हैं? फ़जलू ने कहा :पापा, अरे वह बाजार गये हैं रंडी खरीदने। आजकल उन्हें रंडी बहुत भाती है। वे आते ही होगें।
फ़जलू ने अपने नये शब्द-भंडार का उपयोग करने का अच्छा अवसर देख कर कहा : आप हुक्का पीना पंसद करेगें या दारु लेकर आऊँ? वह मित्र तो यह सुन कर हक्का-बक्का रह गया,घबराते हुये बोला : फ़जलू कैसी उल्टी-सीधी बातें कर रहे हो? तुम्हारी मम्मी कहाँ हैं? उन्ही को बुला लाओ, तब तक पापा भी आते होगें।
फ़जलू ने दरवाजे के भीतर झांक कर आवाज लगाई; मम्मी एक उल्लू का पटृठा आया है । मैने हुक्का पूछा, दारु की पूछी तो कुछ नहीं बोला। कहता है कि उल्टी-सीधी बातें मत करो ; जब तक पापा रंडी वगैरह नहीं लाते , तब तक तुम्हारी मम्मी को ही बुला दो।

12 comments:

Jitendra Chaudhary said...

भई, रजनीश और मुल्ला नसरूद्दीन के तो हम भी चाहने वाले है। रजनीश की किताबों मे एक से बढकर एक किस्से है। बहुत शानदार लिखा है।

अनुराग श्रीवास्तव said...

प्रभात जी,
आपसे गुज़ारिश है यह सिलसिला कायम रखियेगा, बहुत अच्छा है। :-)

अनुराग श्रीवास्तव said...

यह सिलसिला ऐसे ही जारी रखिये - बहुत रोचक है।

Manish Kumar said...

मजेदार ! :)

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत अच्‍छा डाक्‍टर साबह मुल्ला नसरुद्दीन के किस्‍से मजेदार थे, अगली कड़ी का इन्‍तजार रहेगा।

Sagar Chand Nahar said...

बहुत मजेदार चुटकुले हैं कृपया इसे जारी रखें।

Anonymous said...

बहुत मजेदार चुटकुले हैं कृपया इसे जारी रखें।

Anonymous said...

मजेदार, जारी रखें.

pravin said...

वाह भाई वाह, मज़ा आ गया. but increase your font size. स्वामी देव ईस्ट -- गया

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

भाई अद्भुत है.

Astrologer Sidharth said...

जय हो...

Anonymous said...

yeh dil maange more. Please keep up !